ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार अलग अलग होते है। इसके द्वारा कंप्यूटर में जो भी प्रोग्राम चलते हैं तथा कंप्यूटर से जो भी डिवाइस जुड़े हुए होते हैं उन्हें संचालित करने का काम किया जाता है।

यूजर को कंप्यूटर में इंटरफ़ेस देने का कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम के द्वारा ही किया जाता है, ताकि यूजर आसानी से कंप्यूटर में कार्य पूरा कर सकें। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि “ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार कौन-कौन से हैं” अथवा “ऑपरेटिंग सिस्टम के कितने प्रकार हैं।” उससे पहले ऑपरेटिंग सिस्टम के कार्य के उअर एक बार नज़र डालिए।

ऑपरेटिंग सिस्टम कितने प्रकार के होते हैं?

ऑपरेटिंग सिस्टम के एक ही नहीं बल्कि कई प्रकार है जिनके बारे में आपको जानकारी रखनी चाहिए। ऑपरेटिंग सिस्टम अलग-अलग प्रोग्राम और यूजर तथा हार्डवेयर डिवाइस के बीच बहुत ही अहम किरदार अदा करता है।

operating system ke prakar

ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य तौर पर 7 प्रकार हैं जिनमें बैच ऑपरेटिंग सिस्टम, मल्टिप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम, डिसटीब्युटेड ऑपरेटिंग सिस्टम, नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम, टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम, रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम, एंबेडेड ऑपरेटिंग सिस्टम का नाम आता है।

#1. Batch Operating System

कुछ ऑपरेटर की सहायता लेकर के बैच ऑपरेटिंग सिस्टम में एक समान कामों को एक साथ बैच में ग्रुप के तौर पर रखा जाता है। और फिर उसके पश्चात जितने भी बैच होते हैं उन्हें एक के बाद एक प्रक्रिया के द्वारा एक्सिक्यूट करते हैं।

उदाहरण के तौर पर अगर हमारे पास 40 ऐसे प्रोग्राम है जिन्हें हमें एक्सक्यूट करना है और उनमें से कुछ प्रोग्राम C++ लैंग्वेज में लिखे गए हैं वहीं कुछ प्रोग्राम जावा लैंग्वेज में लिखे गए हैं अथवा कुछ प्रोग्राम सी लैंग्वेज में लिखे गए हैं, ऐसी सिचुएशन में जब हम इन सभी प्रोग्राम को अलग-अलग रन करते हैं।

तो इसके लिए यह आवश्यक होता है कि हम सभी लैंग्वेज के लिए अलग-अलग कंपाइलर को लोड करें और उसके पश्चात प्रोग्राम को एकसीक्यूट करें।

वहीं दूसरी तरफ अगर हम 40 प्रोग्राम का एक बैच क्रिएट कर लेते हैं तो हमें कंपाइलर को C++ के लिए सिर्फ एक ही बार लोड करने की जरूरत होगी।

सिर्फ सी प्लस प्लस लैंग्वेज के लिए ही नहीं बल्कि हमें सी लैंग्वेज और जावा लैंग्वेज के लिए भी एक ही बार कंपाइलर लोड करना पड़ेगा। इस प्रकार से हमें बार-बार कंपाइलर को लोड नहीं करना पड़ेगा।

#2. Multiprocessing Operating System

मल्टिप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के अंतर्गत किसी एक ही काम को करने के लिए बहुत सारे मल्टिप्रोसेसर आ जाते हैं और वह सभी मिलकर के उस काम को पूरा करते हैं।

मल्टिप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम सामान्य यूजर के लिए नहीं होता है। इसे मुख्य तौर पर ऑफिस में इस्तेमाल करने के लिए तैयार किया जाता है ताकि एक ही काम पर ज्यादा से ज्यादा यूजर मिलकर के वर्क कर सकें।

#3. Distributed Operating System

हिंदी भाषा में इसे वितरित ऑपरेटिंग सिस्टम कहा जाता है जिसके अंतर्गत यूजर के पास बहुत सारे सिस्टम मौजूद होते हैं और यूजर के पास मौजूद सभी सिस्टम का अपना खुद का रिसोर्सेज होता है जैसे कि सीपीयू और मेमोरी इत्यादि।

डिस्ट्रीब्यूटेड ऑपरेटिंग सिस्टम के अंतर्गत आने वाले रिसॉर्स आपस में कनेक्ट होने के लिए शेयर्ड कम्युनिकेशन नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं। और इसके अंतर्गत जो भी सिस्टम होता है वह व्यक्तिगत तौर पर अपने कार्य को संपन्न करते हैं।

इसमें रिमोट एक्सेस भी मौजूद होता है जिसका मतलब यह होता है कि दूसरे सिस्टम के डाटा को भी यूजर के द्वारा एक्सेस किया जा सकता है और काम किया जा सकता है।

#4. Network Operating System

नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम सर्वर के ऊपर आधारित ऑपरेटिंग सिस्टम होता है। नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम अलग-अलग प्रकार के कंप्यूटर को मिला करके एक ही नेटवर्क के तहत वर्क करता है।

इसे प्राइवेट नेटवर्क के जरिए जॉइंट किया जाता है और उसके पश्चात उसमें जितने भी कंप्यूटर होते हैं उन्हें कनेक्ट करके सर्वर के जरिए उनके अंदर मौजूद सभी डाटा को एक्सेस करने का काम किया जाता है।

नेटवर्क ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर बैंक में किया जाता है और इसे एक्सेस करने के लिए लॉगिन आईडी तथा पासवर्ड की जरूरत होती है।

#5. Time Sharing Operating System

मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम को अगर टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग का ऑपरेटिंग सिस्टम कहां जाए तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं होगी।

टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के अंतर्गत time-sharing कांसेप्ट का इस्तेमाल किया जाता है और टाइम शेयरिंग कांसेप्ट की सहायता लेकर के यह किसी खास टाइम पर एक अथवा एक से ज्यादा प्रोग्राम को एक्सिक्यूट करते हैं।

इसके अंतर्गत काम को पूर्ण होने में जो समय लगता है उसे क्वांटम कहते हैं और जब कोई एक काम कंप्लीट हो जाता है तो ऑपरेटिंग सिस्टम नए काम को एक्सीक्यूट कर देता है और लगातार ऐसे ही प्रक्रिया चलती रहती है।

#6. Real Time Operating System

जब कोई यूजर वास्तविक टाइम डाटा के साथ वर्क कर रहा होता है तब ऐसी अवस्था में रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल होता है। क्योंकि जैसे ही डाटा प्राप्त होता है वैसे ही बिना कोई देरी किए हुए प्रक्रिया स्टार्ट हो जाती है जिसकी वजह से बफरिंग में देरी नहीं लगती है और ना ही बफर होता है।

अगर किसी यूजर को भारी मात्रा में रिक्वेस्ट को प्रोसेसिंग की प्रक्रिया में डाल करके कम समय में प्रोसेसिंग की प्रक्रिया पूरी करनी है तो उसे रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम को यूज में लेना चाहिए।

रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम के टोटल 2 प्रकार होते हैं।

  • हार्ड रियल टाइम: इसमें जो काम होता है उसे कंप्लीट होने में सेकंड की भी देरी नहीं लगती है अर्थात जो काम जितने समय के लिए प्राप्त हुआ होता है वह काम उतने ही समय में कंप्लीट हो जाता है।
  • सॉफ्ट रियल टाइम: जो सॉफ्ट रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम होते हैं उसमें टाइम की कोई भी लिमिटेशंस नहीं होती है। अगर कोई काम चल रहा है तो उसी दरमियान अगर नया काम आ जाता है तो जो नया काम आया हुआ है उसे प्राथमिकता दी जाएगी।

#7. Embedded Operating System

एंबेडेड ऑपरेटिंग सिस्टम को किसी स्पेशल काम को पूरा करने के लिए भी बनाया जाता है या फिर किसी स्पेशल डिवाइस के लिए भी क्रिएट किया जाता है। इसे मुख्य तौर पर किसी विशेष काम के लिए डिजाइन किया जाता है। इसके अलावा यह दूसरा काम नहीं करता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के कितने प्रकार हैं?

सात

ओएस का फुल फॉर्म क्या है?

ऑपरेटिंग सिस्टम

ऑपरेटिंग सिस्टम किस में होता है?

कंप्यूटर और मोबाइल डिवाइस

अंतिम शब्द

तो साथियों इस पोस्ट को पढ़कर ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार के बारे में आप जान चुके होंगे, पोस्ट अच्छा लगा हो तो इसे शेयर करना तो बनता है।

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कंप्यूटर एडिशन की संपादकीय टीम आपको सरल भाषा में कंप्यूटर से संबधित सभी साधारण जानकारी सहित ज्ञान कौशल की तालीम प्रदान करती है।

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